बिलासपुरTIME- अंग्रेजी में लिखे police शब्द का अर्थ का अनर्थ करते नजर आती है बिलासपुर सिविल लाइन थाने की देर रात पेट्रोलिंग करनें वाली पुलिस। कानून का पालन कराने निकली पेट्रोलिंग पुलिस की पैट्रोलिंग के दौरान कुछ दुकानों का देर रात तक बेखौफ खुले रहना जहां पेट्रोलिंग पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करता नजर आता है।
अब बीते रात की बात करें तो सिविल लाइन थाना अंतर्गत कुछ दुकानें नियम विरुद्ध खुली हुई थीं एक पत्रकार से रहा नहीं गया उसने पेट्रोलिंग टीम के एक आरक्षक मनोज साहू से सवाल पूछा कि पेट्रोलिंग के बावजूद मुख्य मार्ग पर कुछ दुकानें खुली हुई थी?
खाकी वर्दी का रौब या फिर वर्दी का नशा कहिए, आरक्षक महोदय बिफर गए, तमतमा गए, गुस्सा गए, हमसे सवाल, पुलिस से सवाल गुस्सा नाक पर पत्रकार को बड़ा आश्चर्य की इनके साहब पुलिस मित्र की दुहाई देते हैं, लेकिन इनका व्यवहार तो.... उनका कहना कुछ इस तरह से था कि दुकानदार रात भर खोले रखे दुकान,अगर तुमको दिक़्क़त है तो लिखित में करो शिकायत, तब करूँगा कार्यवाही!
क्या था पूरा मामला....
दरअसल ये पूरा मामला 14 अगस्त की देर रात का है जब हमारी टीम द्वारा खबर के सिलसिले में सिविल लाइन थाने क्षेत्र गई थी उस दौरान सिविल लाइन थाना क्षेत्र में रात साढ़े बारह बजे तक कई दुकाने खुली थी उसके बावजूद भी पेट्रोलिंग टीम नें दुकानदारों पर नियमानुसार कार्यवाही करने की बजाय ड्यूटी में लापरवाही बरतते हुए देर रात खुली दुकानों को अनदेखा करते हुए निकल गए।
जब हमारी टीम ने थाना में उपस्थित आरक्षक से इस विषय में जानकारी लेनी चाही तो आरक्षक को ग़ुस्सा आ गया और कहने लगा तुम दुकान बंद कराने का लिखित में शिकायत दो उसके बाद मैं तुरंत कार्यवाही करूँगा।
सोचने वाली बात ये है कि यही पेट्रोलिंग में पदस्थ आरक्षक द्वारा किसी ठेला टपरी वाले को निश्चित समय से पाँच दस मिनट लेट बंद करते हुए देख लिया जाता है तो तुरंत कार्यवाही कर दिया जाता है।
प्रशासन द्वारा सभी थाने शहर में पुलिस पेट्रोलिंग कराने का उद्देश्य ही यही है कि शहर के शांति व्यवस्था को दुरुस्त कराना और लॉ एंड ऑर्डर का पालन कराना है ना की कानून का पालन नहीं करनें वाले दुकानदारों को आश्रय देना।
थाने में पदस्थ पुलिस के आरक्षक को इतना भी नहीं मालूम कि बात कैसे की जाती है। इस बात का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि पत्रकारों से बत्तमीजी से बात करते है तो आम लोगो से इनका व्यवहार कैसे होता होगा?
ये कहना भी ग़लत नहीं होगा कि शायद इसलिए ही थाने की चौखट चढ़ने से कतराते हैं धोखे कोई शिकायत लेकर चला गया तो उनके दुर्व्यवहार से भविष्य में थाने जाने का नाम नहीं लेता।
ये छवि है पुलिस वालों की लोगो के नज़र में।
थाना प्रभारी के मातहत और थाने में पदस्थ आरक्षक यदि पत्रकार के सीधे और सही सवाल पर ऐसा जवाब देगा और उल्टा पत्रकार को शराबी होने और शराब पीकर आने का आरोप लगा दे, ऐसी पोलिसिंग पर इतना ही कहा जा सकता है कि कानून व्यवस्था का पालन कराना पुलिस का काम है तो पत्रकार को भी सवाल पूछने का अधिकार है। और यह काम हम बड़ी सरलता से करते हैं।
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