बिलासपुर में इन दिनों पुलिस की सक्रियता सुर्खियों में है, लेकिन कानून व्यवस्था की दोहरी तस्वीर भी सामने आ रही है — एक गरीबों के लिए और दूसरी रसूखदारों के लिए। शहर के सिविल लाइन थाना और सीएसपी कार्यालय से महज कुछ कदम की दूरी पर स्थित 'बॉम्बे पाव भाजी' नामक रेस्टोरेंट देर रात तक खुलेआम संचालित हो रहा है, जबकि ठेला और गुमटी वालों को पुलिस मिनटों में उठाकर कार्यवाही कर देती है।
स्थानीय लोगों और सूत्रों के अनुसार, इस रेस्टोरेंट के सामने खुलेआम शराबखोरी होती है, जिसके वीडियो भी सामने आ चुके हैं। देर रात तक वहां असामाजिक तत्वों का जमावड़ा लगा रहता है, जिससे शांति व्यवस्था भंग होने की पूरी आशंका बनी रहती है। इसके बावजूद पुलिस की चुप्पी कई सवाल खड़े करती है।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि रेस्टोरेंट संचालक का दावा है कि उसे देर रात तक दुकान खोलने की परमिशन मिली है, मगर जब उससे इसकी प्रति मांगी जाती है, तो कोई दस्तावेज सार्वजनिक नहीं किया जाता। सूत्रों के अनुसार, अब तक बिलासपुर में किसी भी रेस्टोरेंट को ऐसी परमिशन नहीं दी गई है। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर अनुमति नहीं है, तो प्रशासनिक संरक्षण के चलते ये कारोबार देर रात तक क्यों चल रहा है?
जब पुलिस छोटे दुकानदारों, ठेले वालों और गरीबों पर सख्ती से कार्रवाई करती है, तो वही पुलिस रसूखदारों पर चुप क्यों रहती है? क्या कानून सिर्फ कमजोरों पर ही लागू होता है?
यह भी देखा गया है कि जैसे ही नया थाना प्रभारी या सीएसपी पदभार संभालता है, कुछ दिनों तक ‘दिखावटी कार्रवाई’ होती है, लेकिन बाद में सबकुछ पुराने ढर्रे पर लौट आता है। अब सवाल यह है कि अगर देर रात कोई घटना या झगड़ा होता है, तो इसकी जिम्मेदारी किसकी होगी?
बिलासपुर की जनता जानना चाहती है —
क्या पुलिस सच में कानून के पालन में ईमानदार है, या फिर कुछ रसूखदारों के आगे मजबूर?
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