"बॉम्बे पाव भाजी को 'छूट' क्यों? क्या कानून से ऊपर है यह दुकान?"


बिलासपुर |शेष यादव

शहर के अलग-अलग हिस्सों में संचालित हो रहे कैफ़े, रेस्टोरेंट और फ़ास्ट फ़ूड दुकानों को जहां रात 10 बजे के बाद दुकानें बंद करने का आदेश प्रशासनिक तौर पर दिया गया है, वहीं ‘बॉम्बे पाव भाजी’ नामक दुकान को इस नियम से कुछ विशेष "छूट" मिलती दिख रही है।

जब हमने अन्य संचालकों से बात की तो ग़ुस्से में सभी ने एक ही सवाल उठाया –
"अगर बॉम्बे पाव भाजी रात भर दुकान चला सकता है तो हमें क्यों रोका जाता है?"

क्या बिलासपुर में कानून सबके लिए अलग-अलग है?

क्या ये नियम सिर्फ़ आम व्यापारियों पर लागू होते हैं?

जिसके ‘संबंध’ पुलिस प्रशासन से हैं, वो क्या कानून के ऊपर है?

क्या कानून व्यवस्था अब रिश्तों और ‘फ्री खाने’ के बदले तय होगी?


सूत्रों से चौंकाने वाला दावा:

विश्वसनीय सूत्रों की मानें तो बॉम्बे पाव भाजी के संचालक का दावा है कि वे कुछ पुलिसकर्मियों को ‘फ्री खाना’ और ‘नकद सेवा’ देते हैं, इसी कारण उन्हें देर रात तक दुकान चलाने की ‘अनकही छूट’ मिली हुई है।

यदि यह दावा सच है, तो सवाल यह उठता है:

 "आख़िर वो कौन पुलिसकर्मी हैं जो कानून की कीमत पर फ्री में पाव भाजी खा रहे हैं?"

पुलिस अधीक्षक चुप क्यों?

क्या बिलासपुर के पुलिस अधीक्षक को इस मामले की जानकारी नहीं है?
या फिर बात कुछ और ही है?

यह दोहरा रवैया न सिर्फ प्रशासन की साख पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि अन्य दुकानदारों के लिए भी ग़ैर-बराबरी और नाराज़गी की वजह बन रहा है।

मांग स्पष्ट है:

यदि बॉम्बे पाव भाजी को परमिशन मिली है, तो वो सार्वजनिक की जाए।

अगर परमिशन नहीं है, तो तुरंत कड़ी कार्यवाही हो।

और अगर पुलिस महकमे से ही मिली है ‘निजी रियायत’, तो जांच कर दोषियों पर केस दर्ज किया जाए।


बिलासपुर टाइम सवाल करता है –

> क्या अब न्याय सिर्फ़ 'परमिशन' के नाम पर बेचा जाएगा? और ‘फ्री खाना’ ही अब नियम बदलने का तरीका बन गया है?



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