छत्तीसगढ़ी फ़िल्म इंडस्ट्री में इस समय फ़िल्मों का बाढ़ आया हुआ है — हर हफ्ते कहीं ना कहीं मुहूर्त, पोस्टर लॉन्च, गाना रिलीज़ या शूटिंग की खबरें सुर्खियां बन रही हैं। लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि इन सैकड़ों में से ज़्यादातर फ़िल्में रिलीज़ के पर्दे तक पहुंचने से पहले ही बंद डिब्बे में कैद हो जाती हैं।
प्रश्न सीधा है: जब रिलीज़ करनी ही नहीं है तो शूटिंग क्यों?
क्या यह सिर्फ़ “शूटिंग-शूटिंग खेलने” का शौक़ है? या इसके पीछे कोई और बड़ा खेल है?
मुनाफ़ा ज़ीरो, फिर भी कैमरे चालू
साल 2022 से 2025 के बीच, लगभग 60% सीजी फ़िल्में पूरा होने के बाद भी रिलीज़ नहीं हुईं। मुनाफ़ा का आंकड़ा लगभग शून्य, लेकिन निर्माण जारी है। निर्माता पैसा झोंक रहे हैं, यूनिट शूटिंग में व्यस्त है, और पोस्ट-प्रोडक्शन के बाद फ़िल्में ‘रिलीज़ डेट अनाउंसमेंट’ के बिना गुम हो जाती हैं।
शूटिंग के बहाने क्या-क्या?
अंदरखाने की फुसफुसाहट कहती है —
शौक़िया प्रोड्यूसर – जिनके लिए फ़िल्म बनाना सिर्फ़ एक स्टेटस सिम्बल है।
व्यक्तिगत प्रमोशन – निर्माता/निर्देशक/एक्टर अपने-अपने सोशल मीडिया पर शूटिंग की तस्वीरें डालकर “स्टार” बनने का नशा पालते हैं।
अनुबंध और फंड का खेल – कहीं-कहीं बजट का प्रवाह और उसका हिसाब किताब भी सवाल खड़े करता है।
बाज़ार की अनभिज्ञता – रिलीज़ के खर्च, थिएटर बुकिंग और प्रचार-प्रसार की समझ का अभाव।
काली, असुर, गणित बाज, संगी रे…
ये नाम सिर्फ़ उदाहरण हैं। इन फ़िल्मों का मुहूर्त बड़े-बड़े मंचों पर, ढोल-ढमाके और स्टारकास्ट के साथ हुआ। शूटिंग के दौरान सेट पर भीड़, फोटोशूट, मीडिया कवरेज — लेकिन आज ये प्रोजेक्ट्स ‘रिलीज़’ की लिस्ट में नदारद हैं।
दुष्परिणाम:
1. इंडस्ट्री की साख गिरना – बाहर के लोग इसे गंभीर व्यवसाय नहीं, बल्कि टाइमपास समझने लगे हैं।
2. टैलेंट का शोषण – नए कलाकार, टेक्नीशियन और वर्कर्स अधूरे प्रोजेक्ट के साथ फंसे रह जाते हैं, और पेमेंट भी अधूरी रह सकती है।
3. निवेशकों का भरोसा खत्म – भविष्य में असली सिनेमा प्रोजेक्ट्स के लिए फंडिंग मुश्किल हो जाएगी।
4. बाज़ार सिकुड़ना – दर्शक नए सीजी सिनेमा की खबरों को गंभीरता से लेना बंद कर देंगे।
निचोड़:
सीजी फ़िल्म इंडस्ट्री में आज सबसे बड़ा सवाल ये नहीं है कि कौन सी नई फ़िल्म बन रही है, बल्कि ये है कि कौन सी फ़िल्म वाकई रिलीज़ होगी।
अगर इस “शूटिंग के शौक़” को कंट्रोल नहीं किया गया, तो यह इंडस्ट्री जल्द ही फर्जी मुहूर्त और अधूरी रीलों के बोझ तले दब जाएगी।
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