बिलासपुर | छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री इन दिनों ग़लत कारणों से सुर्खियों में है। हाल ही में एक नवोदित प्रोड्यूसर रामनाथ साहू ने अपने व्हाट्सऐप स्टोरी पर छत्तीसगढ़ी अभिनेत्रियों को लेकर एक शर्मनाक टिप्पणी करते हुए लिखा — "यहाँ की हेरोइन की दो कौड़ी की कीमत है।"
यह बयान न सिर्फ़ अपमानजनक है, बल्कि CG सिनेमा में काम कर रही दर्जनों मेहनती और संघर्षशील महिलाओं के आत्म-सम्मान पर सीधा हमला है। एक तरफ़ इंडस्ट्री में "संस्कृति और छत्तीसगढ़ी गौरव" की बात होती है, दूसरी ओर यही इंडस्ट्री के तथाकथित निर्माता अपनी ज़ुबान से औरतों को दो कौड़ी बता रहे हैं।
ग़ौरतलब है कि रामनाथ साहू की एकमात्र फ़िल्म "गले लग जा मोर जान" बुरी तरह फ्लॉप हो चुकी है। इसके बावजूद साहू की ज़ुबान में घमंड कम नहीं हुआ।
और सबसे बड़ा सवाल — जिसने कलाकारों का उधारी तक नहीं चुकाया, आज भी जिनके पैसे रामनाथ साहू दबाकर बैठा है, वह दूसरों के सम्मान का मूल्य कैसे तय कर सकता है?
एक उभरता हुआ कलाकार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि, "रामनाथ जी बार-बार मुझे गुमराह करते रहे। आज दूंगा, कल दूंगा कहते हुए महीनों बीत गए। अब सोशल मीडिया पर हीरोइनों को दो कौड़ी बताकर ज़लील कर रहे हैं।"
क्या ऐसे लोगों के हाथों इंडस्ट्री सुरक्षित है?
क्या महिलाओं की मेहनत और संघर्ष को यूँ ही कुचल दिया जाएगा?
छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री के संगठन, महिला आयोग और वरिष्ठ कलाकारों को इस शर्मनाक बयान का संज्ञान लेना चाहिए। यदि आज चुप्पी साध ली गई, तो कल हर संघर्षरत महिला कलाकार को इसी दो कौड़ी के तराज़ू में तौला जाएगा।
अब सवाल सिर्फ़ एक है —
"क्या रामनाथ साहू को महिला कलाकारों से सार्वजनिक माफ़ी नहीं माँगनी चाहिए?"
या फिर CG फिल्म इंडस्ट्री अब ऐसे ही लोगों के हवाले है, जो फ्लॉप फ़िल्में बनाकर भी खुद को 'निर्माता' समझते हैं और औरतों को अपमानित करते हैं?
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