बिलासपुर।
क्या एक महाविद्यालय की मेहनत, ईमानदारी और शिक्षा के प्रति समर्पण भी किसी को खटक सकती है? क्या "A" ग्रेड और स्वायत्तता जैसा सम्मान पाने वाले डीपी विप्र महाविद्यालय की उपलब्धियां अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय के कुलपति ए.डी.एन. बाजपेयी को बर्दाश्त नहीं हो रही?
सवाल गंभीर है, और जवाब छात्रों, शिक्षकों और पूरे समाज को आंदोलित कर रहा है।
हाईकोर्ट से भी मिली स्वायत्तता की मुहर, फिर क्यों कुलपति की ज़िद?
डीपी विप्र कॉलेज को न केवल दो बार NAAC से "A" ग्रेड मिला है, बल्कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) और उच्च न्यायालय ने भी इसे स्वायत्तता का दर्जा प्रदान किया है। इसके बावजूद, विश्वविद्यालय प्रशासन और कुलपति इस निर्णय को न मानने की जिद पर अड़े हैं।
सूत्रों की माने तो विश्वविद्यालय ने पहले भी हाईकोर्ट में चुनौती दी थी और मुंह की खाई थी। लेकिन अब खबर है कि कुलपति बाजपेयी हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ पुनः महंगी वकील टीम खड़ी कर, लाखों रुपये की फीस और अन्य खर्चों में जनधन का अपव्यय करने की तैयारी में हैं।
भ्रष्ट तंत्र का अहंकार, शिक्षा व्यवस्था पर सीधा प्रहार
यह सिर्फ एक कॉलेज की लड़ाई नहीं, बल्कि एक पूरी शिक्षा प्रणाली पर साजिशन दबाव बनाने की कोशिश है।
कांग्रेस, भाजपा, समाजवादी नेता से लेकर छात्र संगठनों तक—सभी यह पूछ रहे हैं:
> "एक कॉलेज अगर कम फीस में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दे रहा है, तो कुलपति का आखिर क्या बिगड़ रहा है?"
छात्र आंदोलन की चिंगारी भड़की
बीते दिनों हुए छात्र आंदोलन ने इस मुद्दे को और भी भड़का दिया है। छात्रों का कहना है कि यह सिर्फ डीपी विप्र की बात नहीं, बल्कि हर उस संस्थान की आवाज़ है जो मेहनत से आगे बढ़ना चाहता है लेकिन भ्रष्ट प्रशासन की दीवार से टकरा जाता है।
कुलपति की योग्यता पर भी सवाल
आरोप यह भी लग रहे हैं कि बाजपेयी न तो अपने विश्वविद्यालय का NAAC निरीक्षण करा पाए, न ही कोई ग्रेडिंग ले सके, लेकिन दूसरों को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। छात्र नेताओं ने यहाँ तक कह दिया है:
"एक नकली विदूषक को कुलपति किसने बनाया और कौन उसकी रक्षा कर रहा है?"
अब सवाल जनता का है – जवाब देना होगा
क्या उच्च न्यायालय के आदेश का पालन करना अब व्यक्तिगत इच्छा पर निर्भर हो गया है?
क्या विश्वविद्यालय के बीस लाख रुपये बर्बाद कर देना "प्रशासन" कहलाता है?
कब तक छात्र चुप रहेंगे और शिक्षा को राजनीति का खिलौना बनने देंगे?
अब छात्र जाग चुके हैं। आंदोलन की चिंगारी भड़क चुकी है।
जनता पूछ रही है, और जवाब किसी भी कुर्सी को देना होगा चाहे वो कुलपति की हो या चुप बैठे नेताओं की।
बिलासपुर TIME आपके साथ इस सच्चाई की लड़ाई में खड़ा है। अगर आप भी इस अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाना चाहते हैं, हमें लिखें या जुड़ें इस मुहिम से।
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