"मैं राजा तैं मोर रानी" का बुरा हाल: दीपक साहू के झूठे स्टारडम की पोल खुल गई?


बिलासपुर।
कभी MCB 2 और MCB 3 जैसी हिट फिल्मों के नाम से जुड़े दीपक साहू की हालिया फिल्म "मैं राजा तैं मोर रानी" को दर्शकों ने सिरे से नकार दिया। हॉल खाली पड़े रहे, शो रद्द हुए और जनता को पता तक नहीं चला कि फिल्म कब आई और कब चली गई।

तो सवाल ये है — क्या दीपक साहू की फिल्मों का चलना असल में डायरेक्टर सतीश जैन का कमाल था? क्या दर्शक फिल्म के नाम और डायरेक्टर के हुनर से जुड़े थे, न कि दीपक साहू जैसे कथित "स्टार" से?

MCB सीरीज़ के पीछे की कामयाबी शायद दीपक साहू की नहीं, बल्कि सतीश जैन जैसे निर्देशक की समझदारी, ट्रीटमेंट और स्टोरीटेलिंग थी। अगर दीपक को ही दर्शक पसंद करते, तो फिर "मैं राजा तैं मोर रानी" क्यों औंधे मुंह गिरी?

इस फ्लॉप ने एक और सच्चाई खोलकर रख दी — कि छत्तीसगढ़ी सिनेमा में अभी ऐसा कोई चेहरा नहीं है जिसे देखने के लिए दर्शक खुद टिकट खरीद कर पहुंच जाएं। और अगर कोई अभिनेता डायरेक्टर की काबिलियत पर बैठकर उड़ने लगता है, तो अगली फिल्म में उसका घमंड ज़मीन चूम ही लेता है।

हालांकि फिल्म के प्रीमियर शो के बाद एक दो शो कहीं कहीं हाउसफुल रहा! फिर भी उसके बावजूद दर्शक फिल्म से जुड़ पाने में असमर्थ रहे।

"मैं राजा तैं मोर रानी" का हाल ये रहा कि खुद फिल्म से जुड़े लोग भी इसे प्रमोट करने में नाकाम रहे। न कोई चर्चा, न कोई टीज़र का असर और न ही रिलीज़ के बाद कोई सुनवाई। यह फिल्म दर्शकों से इतनी दूर रही, जैसे किसी पुराने ज़माने की VCDकैसेट।

अब बड़ा सवाल ये है —
क्या सतीश जैन जैसे डायरेक्टर अगर किसी को भी लेकर फिल्म बना दें तो वो हिट हो जाएगी? अगर ऐसा है, तो इसका मतलब यह भी है कि हिरो-हिरोइन की अदाकारी नहीं, डायरेक्शन और स्क्रिप्ट की पकड़ ही दर्शकों को खींचती है।

स्टार बनने की ग़लतफहमी में चूर कलाकारों के लिए ये एक आईना है।

"मैं राजा तैं मोर रानी" जैसे फिल्में सिर्फ फ्लॉप नहीं होती, ये भविष्य के लिए सबक बन जाती हैं — कि स्टारडम जब तक डायरेक्टर के कंधे पर सवार है, तभी तक वो दिखाई देता है। अकेले में वो सिर्फ भ्रम है।

> "हीरो वही, जो दर्शकों के दिल में हो — घमंड में नहीं।"

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