‘जानकी भाग 1’: सेंसर की रोक के बाद साहू बंधुओं का शोर–हकीकत या हवा?


छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री में विवादों का सबसे चहेता नाम अगर किसी का है, तो वो है प्रोड्यूसर मोहित साहू और उनके भाई हीरो दिलेश साहू। करोड़ों की लागत, “CG की पहली हिंदी फिल्म” का दावा और आसमान छूता हाइप—लेकिन नतीजा? फिल्म ‘जानकी भाग 1’ रिलीज़ से पहले ही सेंसर बोर्ड की रोक में फँस गई।

सेंसर का साफ आदेश – नाम बदलिए

सूत्रों के मुताबिक सेंसर बोर्ड को फिल्म के शीर्षक ‘जानकी’ से आपत्ति थी और नाम बदलने की सलाह दी गई थी। लेकिन मोहित साहू ने अड़कर कह दिया—“नाम नहीं बदलेंगे।”
अब सवाल उठता है –
क्या साहू बंधुओं की ये जिद फिल्म को आगे बढ़ाएगी या हमेशा के लिए रोक देगी?
अगर कोर्ट तक जाने की बात सही है, तो मामला फाइनल कहाँ तक पहुँचा?

बड़बोले दावे बनाम कड़वी हकीकत

रिलीज़ से पहले मोहित साहू की टीम ने फिल्म को लेकर खूब शोर मचाया—

“छत्तीसगढ़ की पहली हिंदी फिल्म”

“करोड़ों की डबिंग”

“नेक्स्ट लेवल प्रोजेक्ट”


लेकिन सच्चाई यह है कि फिल्म सेंसर सर्टिफिकेट के बिना ही रिलीज़ डेट तय कर दी गई थी। यानी हाइप ज्यादा, हकीकत कम।

सोशल मीडिया पर आरोप, सबूत कहाँ?

फिल्म टीम से जुड़े लोगों ने सोशल मीडिया पर सीधे सेंसर बोर्ड के CEO राजेंद्र सिंह का नाम घसीटते हुए लिखा कि उन्हें मजबूर किया गया कि “फिल्म के सभी पात्रों के नाम बदले जाएं।”
अब सवाल यह है—
ये बातें कब और कहाँ हुईं?
क्या मोहित साहू के पास कोई लिखित प्रमाण है?
या यह भी एक और हवा-हवाई बयान है, ताकि विवाद में फिल्म जिंदा रहे?
इंडस्ट्री की साख दांव पर

यह सिर्फ एक फिल्म की कहानी नहीं है। यह छत्तीसगढ़ी सिनेमा की साख और भविष्य का सवाल है।
क्या दर्शकों को झूठे प्रचार और अधूरी कहानियों से गुमराह करना ठीक है?
क्या फिल्में समाज को आईना दिखाने के लिए बनेंगी या सिर्फ साहू बंधुओं के घमंड और बड़बोलेपन का आईना बनकर रह जाएंगी?


निष्कर्ष

मोहित साहू और दिलेश साहू को अब तय करना होगा
काम ज्यादा करेंगे या बयानबाज़ी?
क्योंकि दर्शक हाइप से नहीं, सच्चाई से जुड़ते हैं।
और बिना सबूत, बिना पारदर्शिता के बनाई गई “रोके जाने की कहानी” सिर्फ एक पब्लिसिटी स्टंट ही कहलाएगी।

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