बिलासपुर। छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री में एक बार फिर यह बात साबित हो गई कि एल्बम सॉन्ग की लोकप्रियता और फिल्म की सफलता दो अलग-अलग चीज़ें हैं। हालिया रिलीज़ "जित्तू की दुल्हनियाँ" बुरी तरह फ्लॉप हो गई है, जबकि इसी फिल्म की अभिनेत्री पहले "मोर बर ले देना राजा लाली लुगरा" जैसे सुपरहिट एल्बम से चर्चा में आई थीं।
सवाल ये उठता है कि क्या महंगे एल्बम और यूट्यूब व्यूज़ को देखकर फिल्म की कास्टिंग तय करना अब प्रोड्यूसरों के लिए घाटे का सौदा बनता जा रहा है? फिल्म फ्लॉप होने के बाद साफ हो जाता है कि न गाने की लोकप्रियता और न ही किसी अभिनेत्री की सोशल मीडिया फैन फॉलोइंग से फिल्म को सफलता मिलती है।7
दीपक साहू की मिसाल भी ताज़ा है
दीपक साहू का एक गाना 200 मिलियन व्यूज़ तक पहुंचा था, लेकिन जब उनकी सोलो फिल्म आई, तब हकीकत का आईना सबके सामने आ गया। यानी एक हिट गाना कभी भी पूरी फिल्म को नहीं खींच सकता।
प्रोड्यूसर की जेब जलती है
सीजी फिल्म इंडस्ट्री में यह चलन बन चुका है कि एक-दो हिट गानों के बाद अभिनेत्रियाँ मनमाने पैसे मांगने लगती हैं। लेकिन जब वही अभिनेत्री फिल्म में आती है, तो उनके चेहरे से एक लाख का भी कलेक्शन नहीं आ पाता। अंत में, सारा नुकसान सिर्फ प्रोड्यूसर को होता है। फिल्म फ्लॉप होने के बाद न कोई कलाकार फोन करता है, न कोई निर्देशक।
लेकिन जैसे ही अगली फिल्म की घोषणा होती है, कलाकारों की कॉल की लाइन लग जाती है—“सर, अगली फिल्म में रोल दीजिए”।
अब वक्त है सोचने का
अब वक्त आ गया है कि सीजी फिल्म निर्माता सिर्फ चेहरा देखकर या एल्बम हिट देखकर फैसला न लें। फिल्म एक सामूहिक माध्यम है, इसमें स्क्रिप्ट, निर्देशन, मार्केटिंग और ईमानदारी से की गई एक्टिंग ज़रूरी है—not just a pretty face or a viral song.
निष्कर्ष:
फिल्म को एल्बम समझने की भूल अब भारी पड़ रही है। प्रोड्यूसरों को चाहिए कि वे चकाचौंध में न बहें, बल्कि एक ठोस रणनीति, सही टीम और कंटेंट के दम पर फिल्म बनाएं। क्योंकि फिल्म के फ्लॉप होने की कीमत सिर्फ वही चुकाता है, जिसने पैसा लगाया है।
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