छत्तीसगढ़ी फिल्म दंतेला का हाल देखकर इंडस्ट्री फिर सवालों के घेरे में है। महीनों से प्रचार-प्रसार, पोस्टर-प्रमोशन और सोशल मीडिया पर हवा बनाई गई थी, लेकिन जब फिल्म आखिरकार रिलीज हुई तो बॉक्स ऑफिस पर जीरो रिस्पॉन्स मिला।
असल संकट सिर्फ़ दंतेला की असफलता नहीं है, बल्कि पूरी सीजी फिल्म इंडस्ट्री की गलत मानसिकता है। यहाँ कलाकार एक फिल्म या एक एल्बम करते ही खुद को ‘सुपरस्टार’ मान बैठते हैं। जिन्हें अपने मोहल्ले और रिश्तेदारों के अलावा कोई नहीं जानता, वो भी सेल्फी खिंचवाकर और फेसबुक पोस्ट डालकर ‘स्टारडम’ का मज़ा लेने लगते हैं।
दंतेला के हीरो विशाल दुबे इसका ताज़ा उदाहरण हैं। दर्शकों की नज़रों में अभी तक उनकी कोई पहचान नहीं है, लेकिन ‘स्टार इमेज’ बनाने का खेल पहले ही शुरू हो चुका है। सवाल ये है कि आखिर कब तक सीजी फिल्मों के कलाकार खुद की तारीफ़ के पुल बांधकर खुश होते रहेंगे, जबकि सच्चाई ये है कि सिनेमा हॉल खाली पड़े हैं।
निर्देशक शांतनु पाटनवार की मेहनत अपनी जगह, लेकिन इंडस्ट्री की सोच पर गहरी चोट ज़रूरी है। जब तक यहाँ फिल्म बनाने और रिलीज़ करने की गंभीरता नहीं आएगी, तब तक छत्तीसगढ़ी सिनेमा नेशनल लेवल पर नहीं, बल्कि अपने ही सीमित दर्शकों के बीच दम तोड़ता रहेगा।
अब बड़ा सवाल ये है—क्या छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री खुद को आईना दिखाएगी, या फिर आने वाली फिल्मों का भी यही हश्र होना तय है?
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