13 जून को रिलीज़ के दावे के साथ प्रचारित की जा रही छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘जानकी भाग 1’ अब एक नए विवाद में उलझती नज़र आ रही है। सवाल उठता है कि जब फिल्म की प्रोडक्शन टीम 11 जून को ही सेंसर ऑफिस में सक्रिय थी, तो क्या यह फिल्म तय तारीख पर रिलीज़ के लिए कानूनी रूप से तैयार थी? सेंसर सर्टिफिकेट की मौज़ूदगी के बिना डिस्ट्रीब्यूशन प्लेटफॉर्म्स पर कैसे तारीख घोषित कर दी गई?
जानकारी के मुताबिक, फिल्म ‘जानकी भाग 1’ की टीम 11 जून को सेंसर बोर्ड के दफ्तर में देखी गई, जबकि फिल्म की रिलीज़ डेट पहले ही 13 जून तय कर दी गई थी। इससे यह गंभीर सवाल खड़ा होता है कि क्या सेंसर अप्रूवल के बिना ही फिल्म की रिलीज़ की योजना बना ली गई थी?
क्या डिस्ट्रीब्यूशन पार्टनर, जैसे PVR और INOX, को गलत जानकारी देकर डेट अनाउंस करवाई गई? क्या उन्होंने सेंसर सर्टिफिकेट देखे बिना ही फिल्म को स्लॉट दे दिया?
सूत्रों के अनुसार, सेंसर बोर्ड ने फिल्म के शीर्षक ‘जानकी’ को लेकर आपत्ति जताई है। लेकिन सवाल यह भी है—क्या सिर्फ शीर्षक पर ही आपत्ति है, या फिल्म की स्क्रिप्ट, संवाद, दृश्य आदि पर भी आपत्तियाँ दर्ज की गई हैं?
यह भी स्पष्ट नहीं है कि प्रोडक्शन टीम के पास सेंसर की लिखित आपत्तियों का कोई ठोस दस्तावेज़ मौजूद है या नहीं। यदि है, तो उसे सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया? क्या प्रोडक्शन हाउस ने उन आपत्तियों का जवाब सेंसर बोर्ड को दिया है? या सिर्फ सोशल मीडिया पर प्रचार कर अपनी फिल्म को 'रोके जाने की कहानी' बनाकर प्रचार हथकंडा बना रहे हैं?
यह पूरा मामला सिर्फ एक फिल्म की रिलीज़ नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ी सिनेमा की साख का भी सवाल है। बिना सेंसर सर्टिफिकेट के फिल्म रिलीज़ की तैयारी क्या नियामकीय प्रक्रिया की खुली अनदेखी नहीं है? क्या यह दर्शकों और सिनेमाघरों दोनों को गुमराह करने की कोशिश है?
अगर फिल्म को रोकने का दावा किया जा रहा है, तो उसके पीछे के दस्तावेज़ और प्रक्रिया क्या हैं? या फिर ये सब जानबूझकर किया गया एक ‘पब्लिसिटी स्टंट’ है?
निष्कर्ष:
अब वक्त आ गया है कि ‘जानकी भाग 1’ की प्रोडक्शन टीम सामने आकर पारदर्शिता के साथ बताए कि सेंसर बोर्ड से क्या आपत्ति आई, उसका क्या जवाब दिया गया और रिलीज़ से पहले किन-किन औपचारिकताओं को पूरा किया गया। दर्शकों का हक़ है कि उन्हें आधी-अधूरी नहीं, पूरी सच्चाई बताई जाए।
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