ब्यूरो रिपोर्ट | बिलासपुर TIME
छत्तीसगढ़ की प्रतियोगी परीक्षा तैयारी की दुनिया में कभी एक जाना-पहचाना नाम रहे ‘हरि राम पटेल’ की किताबों को लेकर अब छात्रों के बीच एक अलग ही माहौल बनता जा रहा है।
बीती रात एक किताब दुकान पर जो सुनने को मिला, उसने कई लोगों को हैरानी में डाल दिया।
एक छात्र जब ‘भारत का संविधान’ विषय की किताब खरीदने पहुँचा, तो दुकानदार ने उससे पूछा — "हरि राम पटेल की दूं?"
छात्र ने मुस्कराते हुए जवाब दिया —
"सर, उससे अच्छा तो मैं गूगल से पढ़ लूंगा।"
इस एक जवाब ने वहाँ मौजूद बाकी छात्रों और दुकानदारों को अचंभे में डाल दिया। लेकिन जब हमने और छात्रों से बात की, तो एक के बाद एक निराशा और अविश्वास की परतें खुलती चली गईं।
📖 छात्रों ने लगाए गंभीर आरोप
कई छात्रों ने बताया कि हरि राम पटेल की किताबों में "अलग-अलग पुस्तकों और ऑनलाइन स्रोतों से सीधे कॉपी किया गया कंटेंट" होता है, लेकिन उसका न तो ठीक से संपादन होता है, न ही सटीकता की गारंटी।
एक छात्रा का कहना था:
"पढ़ते समय कई बार ऐसा लगा कि एक ही विषय दो बार दो अलग शब्दों में रिपीट हुआ है। ये किसी क्वालिटी गाइड की पहचान नहीं होती।"
दूसरे छात्र ने कहा:
"अक्सर किताबों में न तो ताजा अपडेट्स होते हैं, न उदाहरण सही होते हैं। परीक्षा की तैयारी के लिए भरोसे की ज़रूरत होती है — और हमें ये भरोसा अब ऑनलाइन या अन्य लेखकों की किताबों में ज़्यादा दिखता है।"
📉 क्या गिरती गुणवत्ता बनी वजह?
शिक्षा क्षेत्र के जानकार मानते हैं कि कॉम्पिटिशन अकैडमी के नाम और हरि राम पटेल की पहचान पर कभी छात्रों को भरोसा था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में गुणवत्ता में गिरावट, कंटेंट की कॉपी और अपडेशन की कमी के कारण छात्रों ने धीरे-धीरे दूरी बनानी शुरू कर दी है।
बड़ा सवाल:
क्या किताबें अब सिर्फ नाम के भरोसे बिकेंगी, या गुणवत्ता और अपडेटेड कंटेंट की भी जिम्मेदारी होगी?
छात्रों का यह विश्वास टूटा है या तोड़ा गया है?
बिलासपुर TIME ने इस मामले में हरि राम पटेल से भी प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की, लेकिन खबर लिखे जाने तक संपर्क नहीं हो पाया।
इस बीच, तैयारी कर रहे छात्र अब स्पष्ट कह रहे हैं —
"जिस किताब पर कॉपी-पेस्ट का शक हो, उस पर समय और मेहनत लगाना हमारी सबसे बड़ी भूल हो सकती है।"
📝 सिर्फ किताब छापना शिक्षा नहीं है — ज्ञान की जिम्मेदारी लेखक की भी होती है।
छात्रों की उम्मीदों के साथ किया गया कोई भी समझौता, केवल एक लेखक की नहीं, पूरी शिक्षा व्यवस्था की साख पर चोट करता है।
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