"बिलासपुर को आखिर क्यों ग्राम पंचायत घोषित कर देना चाहिए? जनता की यह पुकार सत्ता के मुंह पर तमाचा है"


छत्तीसगढ़ की न्यायधानी कही जाने वाली बिलासपुर आज बुनियादी ज़रूरतों के लिए तरस रही है। हालत ये है कि जरा सी बारिश होती है, और घंटों बिजली गुल, सड़कों पर पानी भराव, आवागमन ठप, सड़कों पर गड्ढों की जगह सड़क ढूंढनी पड़ती है।

लोगों की नाराजगी अब क्रोध में बदल रही है। नागरिकों का कहना है

 "अगर शहर की हालत ग्राम पंचायत से भी बदतर हो गई है, तो इसे खुलकर ग्राम पंचायत घोषित कर ही दीजिए।"

जनता का सवाल: अरबों का बजट आख़िर जाता कहां है?

हर साल हज़ारों करोड़ रुपये का बजट बिलासपुर नगर निगम को मिलता है। लेकिन नाली-गली-सड़क जैसी प्राथमिक सुविधाएं तक नहीं मिल पातीं। बरसात के पहले बनती सड़कों का डामर, पहली बारिश में बह जाता है।

लोग पूछ रहे हैं:

क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है?

क्या जनता की मेहनत की कमाई को ऐसे ही बर्बाद किया जाएगा?

क्या जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की मिलीभगत से ही शहर का हाल बर्बाद हो गया?

"बिलासपुर को नेताओं और अधिकारियों ने मिलकर निगल लिया है" — नागरिकों का सीधा आरोप

बिलासपुरवासियों का आरोप है कि शहर को नेताओं और निगम अधिकारियों ने लूट की मंडी बना रखा है। घोषणाएं होती हैं, लोकार्पण होते हैं, लेकिन धरातल पर सिवाय गड्ढों, गंदगी और जलजमाव के कुछ नहीं होता।

बिलासपुर में विकास सिर्फ पोस्टर में होता है, ज़मीन पर सिर्फ़ गड्ढे हैं

इस शहर को अगर "स्मार्ट सिटी" कहा जाता है, तो यह स्मार्ट भ्रष्टाचार की मिसाल बन चुका है। हर योजना का हश्र यही होता है—शुरू होते ही ख़राब, और फिर सालों तक अधूरा।

अब आप ही बताइए, क्या बिलासपुर को 'सिटी' कहलाने का हक़ है? या सचमुच इसे 'ग्राम पंचायत' घोषित कर देना चाहिए?

अपनी राय ज़रूर दें, क्योंकि अब सवाल शहर की आत्मा का है...

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